Monday, September 29, 2008

मान घटे नित पर घर जाए

रिटायर्मेंट के बाद में प्रतिदिन सुबह उनके घर जाने लगा /वही पेपर पढता /उनकी चाय बन रही होती तो चाय भी पीता-समय पास करना कितना कठिन होता है ,भुक्त भोगी ही जानता है /एक दिन मैं गया तब वे नहाने जारहे थे
मुझसे कह गए आता हूँ दस मिनट में, मैं पेपर पढ़ने लगा /भाभी जी को पता न था /दरवाजे की घंटी बजी /वे बाथरूम से चिल्लाए देखना कौन है /किचन में से भाभी जी बोलीं ,वोही होंगे बृजमोहन और कौन होगा /काम न धाम

1 comment:

अमित माथुर said...

नमस्कार श्रीवास्तव जी, वास्तव में इस ब्लॉग दुनिया में दूसरे ब्लोगेर्स के साथ जुड़ना बहुत मुश्किल है. ऑरकुट जैसी कोई व्यवस्था यहाँ होनी चाहिए थी. खैर, आपकी सभी पोस्टिंग्स बेहतरीन हैं. उम्मीद है आप ब्लोगेर्स भाइयो से जुड़ने के लिए http://ashokchakradhar.blogspot.com और मेरे ब्लॉग http://vicharokatrafficjam.blogspot.com पर कमेन्ट और अपने ब्लॉग का url ज़रूर देंगे. -अमित माथुर