Tuesday, October 28, 2008

कुछ लिखा है

महानुभाव /आप पधारे स्वागत /मैंने शारदा ब्लॉग पर कुछ लिखा है =सरसरी नजर डालने की कृपा करें

Saturday, October 25, 2008

जोक तथा संदेश ]९]

जोक :-अत्यन्त ही उत्तम स्वास्थ्य की धनी ,खाते पीते घर की ,मंथर गति , गले में सोने की चैन ,एक हाथ में पर्स दूसरे में मोबाईल जून का महीना दोपहर का समय -सूनी सडक /लगा कोई पीछे है ,कनखियों से देख कर सतर्क , और आगे चलने पर पुन सिंहाबलोकन, मोबाईल पर्स में ,पर्स कसके पकड़ लिए -/ हालांकि पीछे बच्चा छोटा ही था/ थोड़े और आगे चलने पर पीछे मुड़कर =""क्यों वे पर्स छीनने का इरादा है क्या ?"" -""अम्मा मै तो तेरे पीछे पीछे तेरी छावं में चल रहा हूँ "" चल छैयां छैयां छैयां छैयां /

संदेश :- आज के युग में हर व्यक्ति से सावधान और सतर्क रहना चाहिए चाहे वह छोटा बच्चा ही क्यों न हो /नलों का जाल नहीं था हेंड पम्प खुदे नहीं थे /जमींदार का गहरा कुआ /मैंने गगरा धोया 'बाल्टी रस्सी में बांधी और कुए में डाली ,भरने पर खींचना ही चाहता था कि एक बच्चा मेरा गगरा उठा कर भाग गया / अब में पड़ा मुश्किल में -रस्सी छोडूं तो बाल्टी सहित कुए में -और पानी खींच कर फिर तलाशूँ तो बच्चा न जाने कहाँ पहुचे /दस दिशाएँ -वहाँ कौन मुझे बताता कि "" लै दच्छिन दिसि गयउ गोसाईं ""

दूसरी बात ये जीवन एक कर्मभूमि है ,युद्ध भूमि है यहाँ के आघात झेलने के लिए एक ढाल की जिन्दगी में जरूरत पड़ती ही है एक छत्रछाया चाहिए -ज्योतिष का गणित इस मामले में सही बैठ जाता है - शुक्र की महा दशा ,पंडित ने कहा इस साल आपके पिताजी लड़का बोला सर उन्हें तो पाँच साल हो गए / तो फिर तुम्हारा बड़ा भाई मर जायेगा /सर मै ही तो घर में सबसे बड़ा हूँ - तो फिर साले इस साल तेरा छाता जरूर खो जायेगा / तो ढाल मजबूत होना चाहिए /गिरधर कवि हुए उन्होंने कहा छाव की जरूरत हो तो मोटा पेड़ तलाशना चाहिए "" कह गिरधर कवि राय ,छावं मोटे की गहिये /पात सबै झर जाएँ तऊ छायाँ में रहिये /यहाँ मोटे पेड़ से मतलब संपन्न ,रसूख ,दबदबा ,ऊपर तक पहुँच सब शामिल है /

Friday, October 17, 2008

जोक तथा संदेश (८)

जोक:- बी ऐ फईनल में एक लडकी फर्स्ट क्लास आई तो कालेज ने पेरेंट्स को बुलाया पिताजी बाहर गए थे तो माँ को कालेज अकेले लडकी के साथ जाना पडा कालेज स्टाफ ने देखा तो माँ से कहा आप दोनों माँ बेटी जैसी लगती ही नहीं है माँ को अपने रख रखाव पर गर्व होना स्वाभाबिक था शर्मा कर बोली क्या में बेटी के बराबर दिखती हूँ स्टाफ ने कहा नहीं आपकी बेटी आपके बराबर दिखती है /

संदेश"" अति सर्वत्र वर्जयेत "" बुद्ध भगवान् ने कहा ""वीणा के तार"" मगर उनसे भी बहुत पूर्व गीता में कृष्ण ""अपरे नियताहारा"" : तथा ""युक्ताहारविहारस्य "" अलग अलग अध्यायों में कह चुके हैं /मै आपको सत्य घटना बताऊँ ,एक वकील साहिबा कुछ जरूरत से भी बहुत ज़्यादा गोल मटोल, नाटा कद, पेशी तारीख लेने आई तो साहब ने कहा वकील साहिब ,सिविल जज की जगह निकली है, फार्म भर दो =वकील साहेब ने कहा जी सर भर रही हूँ /वकील साहेब के जाने के बाद साहब मेरी और मुस्कराकर बोले ,मै ये चाहता हूँ कि यह जो भार, धरती पर इधर उधर डोलता फिर रहा है एक जगह स्थिर हो कर बैठ जाए / ऐसा भी नहीं होना चाहिए / लेकिन शरीर इतना दुबला भी न होना चाहिए जैसे मुझसे बिहारी कवि ने कहा मेरी नायिका विरह में झूला झूल रही है =मैंने कहा विरह और झूले का ताल्लुक ही नही ,झूला खुशी का प्रतीक है /तो कवि विहारी ने [[यह सैकडों साल पुरानी घटना है}} कहा देखो मेरी नाइका विरह में इतनी दुबली हो गई है कि जब साँस लेती है तो दस कदम पीछे और साँस छोड़ती है तो दस कदम आगे इस तरह से झूला झूल रही है / अत बीच का रास्ता अपना कर ""स्लिम "" और"" कमजोरी "" का अंतर समझ लेना चाहिए /कहीं ऐसा न हो कि स्लिम रहने के चक्कर में दुर्बलता के कारण जीवन दुखदायी हो जावे /

Wednesday, October 15, 2008

जोक तथा संदेश (७)

जोक पहले रजाई गद्दों में भरने बाली रुई को धुनने की मशीने नहीं होती थी एक उपकरण होता था धनुष बाण जैसा /रुई धुनने वाला जंगल से जा रहा था /अचानक झाडी में से निकलते हुए लड़ैया से सामना हो गया [[मैं स्पष्ट करदूं यह एक जानवर होता है लोमडी होती है न उसे सब जानते है ++अंगूर खट्टे के कारण ++ तो जो पुरूष लोमडी होती है (शीमेल नहीं ) मतलब और स्पष्ट करदूं लोमडी का पति उसको लड़ैया कहते है / हाँ तो जब रुई वाले से सामना हुआ तो लड़ैया ने सोचा अब ये मारेगा तो तुंरत बोला "" कांधे धनुष हाथ में वाना ,कहाँ चले दिल्ली सुल्ताना "" रुई वाला सुन कर कुप्पे सा फूल गया और बोला "" बन के राज बेर का खाना -बडे की हस्ती बडे ही पहिचाना / आगे बढ़ गया /जब लड़ैया ने देखा कि अब में इसकी मार से बाहर हूँ तो आवाज़ दी - अवे ओ /रुई वाले ने पीछे मुड़ कर देखा ,तो लड़ैया उसकी माँ बहिन से नाजायज रिश्ते की गाली देकर भाग गया /

संदेश :_ गोस्वामी जी ने कहा है ""सुर नर मुनि सब की यह रीती ,स्वारथ लाग करें सब प्रीती ""जीवन में बहुत ऐसे मौके आते हैं कि लोग झूंठी तारीफ करके हमें ठग लेते हैं /मंत्रियों के पास कितनी भीड़ रहती है लेकिन पद छिनते ही आस पास आठ दस लोग रह जाते है /मंत्री जी के मित्र ने कहा मुझे आपसे काम है -मंत्री जी ने कहा अपन फुर्सत में बात करेंगे /मित्र ने कहा जब आपको फुर्सत होगी तब आप मेरा काम करने लायक ही नहीं रहोगे /पत्नी पहली तरीख को स्नेह प्रर्दशित करे तो ठीक /मगर २५ को करे तो सतर्क हो ज़ाना दाल में कुछ काला जरूर है /बाप चिट्ठी लिख लिख पर परेशान था बेटा जवाब ही नहीं देता था /बेटे का हेंडराइटिंग देखने बाप तरस गया =बाप ने पत्र भेजा बेटा १५ हजार का चेक भेज रहा हूँ बहू को कुछ रकम मेरी तरफ से बनवा देना / पत्र के साथ चेक संलग्न नहीं किया /चार दिन बाद ही बेटे का पत्र आगया / प्रभुता पाहि काही मद नाही सही है मगर प्रभुता आए ही न और मद आजाये गड़बड़ हो जाएगा /कोई आपकी तारीफ कर रहा है तो सोचो ये तारीफ क्यों कर रहा है और अगर झूंठी कर रहा हो तो जरूर जरूर सोचो /कोई आपकी कविता पर लिखदे ""गंभीर रचना ""अरे भइया क्या गंभीर / कोई लिखदे बहुत सुंदर पूछो कौन हम ,तुम या कविता और तीनों में कोई भी सुंदर है तो क्यों ?

Monday, October 13, 2008

जोक तथा संदेश (६)

जोक एक अपरिचित क्षेत्र से ,अपरिचित क्षेत्र में ,एक अपरिचित मित्र के यहाँ एक अपरिचित्र मित्र आया /[[ब्लोगिंग ,चेटिंग .,ऑरकुट बगेरा से दोस्ती हुई एकदूसरे के घर आने का आमंत्रण ]] अब बाह्य मित्र अपनी ही बात करे ,हम जमीदार थे खेत बागीचा गाय भैंस स्थानीय को बोलने ही न दे /बाह्य कहने लगा हमारे दादाजी बडे बलवान ,एक दिन जंगल से लौट रहे रास्ते में नदी में पानी पीने लगे ,क्या देखा की बगल में शेर पानी पी रहा है /स्थानीय =फिर क्या हुआ =बाह्य -क्या हुआ शेर को गुदगुदा दिया ,साला हंसता हुआ भाग गया /फिर ताऊजी का कहने लगा क्या हेल्थ ,सॉलिड बॉडी =जंगल से आरही थे ,सामने शेर आगया =अब शेर इनको देखे ,ये शेर को देखें पाँच मिनट हो गए /स्थानीय =फिर क्या हुआ ? बाह्य -क्या हुआ दो टुकड़े कर के रख दिए /स्थानीय क्या शेर के ? बाह्य नहीं ताऊजी के /

तो क्या हुआ शाम को दोनों मित्र बाज़ार घूमने गए /एक जगह गिलकी रखी थी ,वाह्य -ये क्या है ?स्थानीय -ये गिलकी है =वाह्य -ओ इंतनी छोटी छोटी हमारे यहाँ तो लौकी के बराबर होती है /स्थानीय चुप / आगे बड़े तो एक जगह आंवले बिक रहे थे /बाह्य ये क्या है ?स्थानीय ये आंवले है /बाह्य ओ आंवला आई नो आंवला =मगर बहुत छोटा /हमारे यहाँ कद्दू माफिक बड़ा होता है /स्थानीय चुप/ आगे बड़े एक जगह तरबूज ट्रक में से उतर रहे थे /बाह्य ये क्या है ?स्थानीय ये अंगूर है /बाह्य चुप /

संदेश ;- हमेशा अपने परिवार अपने बच्चों ,बुजुर्गों की ही तारीफ़ न करता रहे ,लोग बोर हो जाते है -पीठ पीछे कहते है यार उसके यहाँ जाओ तो या तो उसकी बात सुनो या उसकी बात करो /कुछ लोगों को बड़प्पन जताने की आदत होती है ,कोई आया होगा तो चाय पिला कर कहेगे बेटा जरा अंदर बोरी में से दो चार सुपारी के टुकड़े दे जाना /अब बोरी में से ?और कल ही सौ ग्राम सुपारी उधार लाये है /एक मित्र ,मित्र के यहाँ गया ,मित्र के घर एक भव्य तस्वीर टंगी थी [[भरा चेहरा ,मूंछे ,शेरबानी ,सोने की चेन आदि ]]तस्वीर पर माला टंगी थी /मित्र ने मित्र से पूछा ये कौन है /मित्र ने जवाब किया "मेरे ग्रैंड फादर है "मित्र सोचने लगा ;काश अगर उस दिन आर्ट गेलरी में मेरे पास ५०० रुपे और ज्यादा होते तो आज ये मेरे ग्रैंड फादर होते /ज़्यादा फेंकना नहीं चाहिए जैसा की काका ने कहा था ""कहो हमारे बाप , के बाप ,बाप के बाप ,उनके जूता को हतो छप्पन गज को नाप ""

Saturday, October 11, 2008

अजीब सोच

बचपन से मैं दुश्मनों से बहुत डरता रहा हूँ /चाहे वे देश के हों या मेरे अपने हों /दुर्बल काया इसका एक कारण हो सकता है /इसलिए में हमेशा कबच ,स्तोत्र ,बज्र पंजर ,चालीसा आदि में तलाशता रहता कि कहीं दुश्मनों से निडर होने की उन्हें मारने की बात मिले /सोमनाथ मन्दिर के वक्त भी ऐसा हुआ था /हम सोचते थे वे त्रशूल वगैरा लेकर आयेंगे =दुश्मन को पता ही नहीं था कि ऐसा होता है उन्हें किसी ने बताया ही नहीं तो वे तयारी करते रहे और हम विस्वास /विश्वास -तयारी -मन्दिर की लूट /खैर छोड़ो /
तो मुझे शिव चालीसा मिल गया ""ले त्रशूल शत्रु को मारो ,संकट से मोहे आन उवारो "" एक दिन जब मैं पाठ कर रहा था तो ले त्रशूल वाली लाइन पर मेरी आवाज़ ऊंची हो गई = " ले त्रशूल शत्रु को मारो "" किचन में से आवाज़ आई ""मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता तुम कुछ भी करलो =मैंने कहा श्रीमती शारदा देवीजी मैं परोपकारी जीव हूँ -बहुजन हिताय बहुजन सुखाय मेरा द्रष्टिकोण है मेरी प्रार्थना का तात्पर्य ये है कि वे त्रशूल लेकर तुम्हारे शत्रु को मारें = बोलीं बात तो वो ही हुई न , मैं कहाँ कहाँ नोमिनेशन लिए फेमिली पेशन को भटकती फिरूंगी

Friday, October 10, 2008

जोक तथा संदेश (५)

जोक नदी का किनारा , ,पेड़ की छाव ,माता ,पुत्र और बधू विराजमान ,नौका बिहार का द्रश्य ,शीतल मंद सुगन्धित बयार जिसके वाबत कभी कवि घाघ ने कहा था "ऊंच अटारी मधुर बतास ,घाघ कहें घर ही कैलाश "वर्तमान में मानो किसी व्ही आई पी के घर जलसा हो रहा हो सुंदर ब्रक्षों पर नव पल्लव मानो चुनाव के समय नए नेता .बच्चे चहुँ ओर धमा चौकडी मचाते हुए संसद का द्रश्य प्रस्तुत कर रहे थे और सूर्य अस्ताचल की ओर विपक्ष की तरह वाक् आउट करने को तत्पर / अचानक ,अप्रत्याशित माँ का प्रश्न ""काहे रे बेटा ,अपन तीनों नाव में हों और नाव डूबने लगे तो तू मुझे बचायेगा कि तेरी पत्नी को /अब लड़का पड़ा चक्कर में / यदि " कहूं बहू को " तो माँ कहेगी नौ महीना पेट में रखा ,पाल पोस कर बडा किया बुढापे के सहारे के लिए ,और मेरे मरते वक्त चला चार दिना की आई हुई को बचाने /अगर कहूं " माँ तुझे " तो पत्नी कहे सात फेरे लिए -पाँच और सात बचन ,ध्रुब तारा की गवाही , अग्नि कि साक्षी ,और चला बुढिया को बचाने /पुत्र किंकर्तव्यबिमूढ़, एक चुप्पी ,एक ध्यानस्थ योगी की भांति मौन ऐसे चुप जैसे ब्लॉग पर बेहूदा कमेन्ट देख कर सभ्य ब्लोगर इस उलझन में कि मिटादे या इस बेहूदगी को अन्य लोगों को भी पढने दे ताकि मानसिक दिवालियापन से अन्य भी परिचित ही सकें =आख़िर पत्नी को ही बोलना पढ़ा ""देखो तुम तो माताजी को ही बचा लेना मुझे बचाने तो बहुत आ जायेंगे “”

संदेश :-अब्बल तो ऐसे इत्तेफाक कम ही होते हैं कि माँ को बेटे के साथ रहना पड़े /भलेही यह कहा गया हो कि ""कुपुत्रो जायते क्वचिदपि कुमाता न भवति ""माँ को बेटा अपने पास नहीं रखना चाहता /किंतु ऐसी बात भी नहीं है कुछ बेटे आपस में झगड़ते हैं, कि माँ हमारे पास ही रहेगी एक तो जननी ,लालन पालन किया ,गीले में सो कर सूखे में सुलाया ,माँ के प्रति प्रेम और सबसे बड़ी उसकी पेंशन जिसमें से एक चौथाई भी बुढिया पर खर्च न हो /तो बेटे झगड़ते है -कहते हैं हम श्रवणकुमार है , खैर भइया / जो क्षेत्र ही अपनों नई है /अपना तो निवेदन इतना है की यदि ऐसा योग बन जाय, तो पुत्र की गतिबिधियों से कभी ऐसा प्रकट न हो कि, उसका झुकाव किस तरफ़ है ,माँ की और होगा तो बहू अपने को नौकरानी समझेगी और बहू की और होगा तो माँ को लगेगा पेंशन पूरी रख लेता है काम भी करना पड़ता है -फिर माँ की पेशन और बेटे की तनखा का हिसाब अलग अलग होने लगता है /गृहस्थी बड़ी ख़राब चीज़ है एक ऐसा कांच का बर्तन जिसमे डिजाइन है ,फूल पत्ती भी बने है ,बहुत सुंदर दर्शनीय ,मगर बहुत नाज़ुक ,जरा सा झटका बर्दाश्त न कर पाये / अत: अनावश्यक ,किंतु दूरगामी प्रभाव रखने वाले प्रश्नों से ,हंसी मज़ाक में भी बचा जाए तो ही अच्छा है /