जोक नदी का किनारा , ,पेड़ की छाव ,माता ,पुत्र और बधू विराजमान ,नौका बिहार का द्रश्य ,शीतल मंद सुगन्धित बयार जिसके वाबत कभी कवि घाघ ने कहा था "ऊंच अटारी मधुर बतास ,घाघ कहें घर ही कैलाश "वर्तमान में मानो किसी व्ही आई पी के घर जलसा हो रहा हो सुंदर ब्रक्षों पर नव पल्लव मानो चुनाव के समय नए नेता .बच्चे चहुँ ओर धमा चौकडी मचाते हुए संसद का द्रश्य प्रस्तुत कर रहे थे और सूर्य अस्ताचल की ओर विपक्ष की तरह वाक् आउट करने को तत्पर / अचानक ,अप्रत्याशित माँ का प्रश्न ""काहे रे बेटा ,अपन तीनों नाव में हों और नाव डूबने लगे तो तू मुझे बचायेगा कि तेरी पत्नी को /अब लड़का पड़ा चक्कर में / यदि " कहूं बहू को " तो माँ कहेगी नौ महीना पेट में रखा ,पाल पोस कर बडा किया बुढापे के सहारे के लिए ,और मेरे मरते वक्त चला चार दिना की आई हुई को बचाने /अगर कहूं " माँ तुझे " तो पत्नी कहे सात फेरे लिए -पाँच और सात बचन ,ध्रुब तारा की गवाही , अग्नि कि साक्षी ,और चला बुढिया को बचाने /पुत्र किंकर्तव्यबिमूढ़, एक चुप्पी ,एक ध्यानस्थ योगी की भांति मौन ऐसे चुप जैसे ब्लॉग पर बेहूदा कमेन्ट देख कर सभ्य ब्लोगर इस उलझन में कि मिटादे या इस बेहूदगी को अन्य लोगों को भी पढने दे ताकि मानसिक दिवालियापन से अन्य भी परिचित ही सकें =आख़िर पत्नी को ही बोलना पढ़ा ""देखो तुम तो माताजी को ही बचा लेना मुझे बचाने तो बहुत आ जायेंगे “”
संदेश :-अब्बल तो ऐसे इत्तेफाक कम ही होते हैं कि माँ को बेटे के साथ रहना पड़े /भलेही यह कहा गया हो कि ""कुपुत्रो जायते क्वचिदपि कुमाता न भवति ""माँ को बेटा अपने पास नहीं रखना चाहता /किंतु ऐसी बात भी नहीं है कुछ बेटे आपस में झगड़ते हैं, कि माँ हमारे पास ही रहेगी एक तो जननी ,लालन पालन किया ,गीले में सो कर सूखे में सुलाया ,माँ के प्रति प्रेम और सबसे बड़ी उसकी पेंशन जिसमें से एक चौथाई भी बुढिया पर खर्च न हो /तो बेटे झगड़ते है -कहते हैं हम श्रवणकुमार है , खैर भइया / जो क्षेत्र ही अपनों नई है /अपना तो निवेदन इतना है की यदि ऐसा योग बन जाय, तो पुत्र की गतिबिधियों से कभी ऐसा प्रकट न हो कि, उसका झुकाव किस तरफ़ है ,माँ की और होगा तो बहू अपने को नौकरानी समझेगी और बहू की और होगा तो माँ को लगेगा पेंशन पूरी रख लेता है काम भी करना पड़ता है -फिर माँ की पेशन और बेटे की तनखा का हिसाब अलग अलग होने लगता है /गृहस्थी बड़ी ख़राब चीज़ है एक ऐसा कांच का बर्तन जिसमे डिजाइन है ,फूल पत्ती भी बने है ,बहुत सुंदर दर्शनीय ,मगर बहुत नाज़ुक ,जरा सा झटका बर्दाश्त न कर पाये / अत: अनावश्यक ,किंतु दूरगामी प्रभाव रखने वाले प्रश्नों से ,हंसी मज़ाक में भी बचा जाए तो ही अच्छा है /
Friday, October 10, 2008
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3 comments:
सुंदर और सार्थक संदेश वाला जोक सच है श्रीवास्तव जी कभी कभी धर्मसंकट खडा हो जाए तो मुश्किल ही है आपके ब्लॉग पर पधारने का धन्यबाद
bahut prernadayak katha aur vyavharik jeevan key liye upyogi seekh dee hai aapney. achcha laga.
bahut hi sarthak sujhav tatha joke. blog par chadhate rahiye.
dhanyavad
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